मुश्किल होता है
पीछे लौटना,
उससे भी अधिक
मुश्किल होता है
नीचे झुकना I
पीछे लौटना,
उससे भी अधिक
मुश्किल होता है
नीचे झुकना I
तुम्हारे लिए पीछे लौटने में
और नीचे झुकने में
तनिक भी कठिनाई नहीं,
जैसे पेड़ के तले
पके हुए फल को देख
लौट आता है
मीलों चला आदमी
फल को उठाने के लिए
दुहरा होता है
बोझे से दबा आदमी I
और नीचे झुकने में
तनिक भी कठिनाई नहीं,
जैसे पेड़ के तले
पके हुए फल को देख
लौट आता है
मीलों चला आदमी
फल को उठाने के लिए
दुहरा होता है
बोझे से दबा आदमी I
यों तो हर फसल के लिए चाहिए
नर्म और साफ़ खेत
मीठा पानी और गुनगुनी धूप ,
प्रेम की फसल के लिए
लौटना और झुकना ही
होता है पर्याप्त,
उसीसे टूटती है दुरभिसंधियाँ
जैसे लौट आता है बादल
धरती से मिलने के लिए
झुक जाता है
प्रेम की फसल को बोने के लिए
बरसात के साथ,
इसी के साथ
धरती हो जाती है नम्र
खोकर सारी ग्रन्थियाँ I
नर्म और साफ़ खेत
मीठा पानी और गुनगुनी धूप ,
प्रेम की फसल के लिए
लौटना और झुकना ही
होता है पर्याप्त,
उसीसे टूटती है दुरभिसंधियाँ
जैसे लौट आता है बादल
धरती से मिलने के लिए
झुक जाता है
प्रेम की फसल को बोने के लिए
बरसात के साथ,
इसी के साथ
धरती हो जाती है नम्र
खोकर सारी ग्रन्थियाँ I
लौटना और झुकना
पराजय है नहीं
कहीं न कहीं इसमें छिपा है
विजय का पथ कहीं,
लौटना और झुकना
रुकना है नहीं
कहीं न कहीं मिलता है
नवीन प्रारम्भ का संदर्भ कहीं,
लौटना और झुकना
मृत्यु है नहीं
कहीं न कहीं इसमें निहित है
नवीन जीवन का स्रोत कहीं I
पराजय है नहीं
कहीं न कहीं इसमें छिपा है
विजय का पथ कहीं,
लौटना और झुकना
रुकना है नहीं
कहीं न कहीं मिलता है
नवीन प्रारम्भ का संदर्भ कहीं,
लौटना और झुकना
मृत्यु है नहीं
कहीं न कहीं इसमें निहित है
नवीन जीवन का स्रोत कहीं I
लौटना और झुकना,वे ही जानते हैं
जो प्रेम की फसल बोना जानते हैं,
वे यह भी जानते हैं-
प्रेम की फसल, फसल ही नहीं है,
यह है –
नर्म और साफ़ खेत भी
मीठा पानी और गुनगुनी धूप भी
जिन पर बोई जाती है
जिंदगी की तमाम फसलें I
जो प्रेम की फसल बोना जानते हैं,
वे यह भी जानते हैं-
प्रेम की फसल, फसल ही नहीं है,
यह है –
नर्म और साफ़ खेत भी
मीठा पानी और गुनगुनी धूप भी
जिन पर बोई जाती है
जिंदगी की तमाम फसलें I
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द (राज)
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