तुम जानते हो
तुम्हारे सवालों के जवाब
मैं नहीं दे सकता,
फिर भी
पूछ ही लेते हो
वे ही सवाल
जिनको पूछ चुके हो
कई-कई बार मुझको,
जिनकी करते हो
बार-बार आवृत्ति
जैसे ऋतुचक्र के
आने–जाने पर
जलते मौसम की
हो जाती है पुनरावृत्तिI
तुम्हारे सवालों के जवाब
मैं नहीं दे सकता,
फिर भी
पूछ ही लेते हो
वे ही सवाल
जिनको पूछ चुके हो
कई-कई बार मुझको,
जिनकी करते हो
बार-बार आवृत्ति
जैसे ऋतुचक्र के
आने–जाने पर
जलते मौसम की
हो जाती है पुनरावृत्तिI
मैं प्रेम करता हूँ?
शायद हाँ,
इसलिए कि
मैं इसके बिना
रह नहीं सकताI
शायद हाँ,
इसलिए कि
मैं इसके बिना
रह नहीं सकताI
मैं प्रेम करता हूँ?
शायद नहीं,
इसलिए कि
मैं प्रेम को
अभिव्यक्त
नहीं कर सकता I
शायद नहीं,
इसलिए कि
मैं प्रेम को
अभिव्यक्त
नहीं कर सकता I
कभी-कभी
सवालों के जवाब
शब्दों से
नहीं मिला करते,
शब्दों के स्थान पर
कांपते हुए होठ
थरथराती देह
अपलक आँखें
और
अपराधबोध का भाव
देते चले जाते हैं।
सवालों के जवाब
शब्दों से
नहीं मिला करते,
शब्दों के स्थान पर
कांपते हुए होठ
थरथराती देह
अपलक आँखें
और
अपराधबोध का भाव
देते चले जाते हैं।
लेकिन,
वाणी सुनने को
हठी कर्ण
मूक जवाब
स्वीकार नहीं करते
जैसे आत्ममुग्ध जन
अन्य को
नहीं गिना करतेI
वाणी सुनने को
हठी कर्ण
मूक जवाब
स्वीकार नहीं करते
जैसे आत्ममुग्ध जन
अन्य को
नहीं गिना करतेI
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द (राज)
No comments:
Post a Comment