Monday 6 April 2015

प्रेम के सन्दर्भ में

रखी गई खिड़कियाँ
हवा के लिए
उजास के लिए
बाहर की ओर दिखाई दे अपना
उसे अपने पास बुलाने के लिए I
रखी नहीं गई खिड़कियाँ
घुटन के लिए
आस-पास अँधेरे को
बनाए रखने के लिए
बाहर फैले हुए रिश्तों की
लता को काटने के लिए I
खिड़कियों पर डाल देना
झीनी-झीनी सी यवनिका,
परन्तु,
सटा कर निर्जीव कपाट
चढ़ा मत देना अर्गला,
नहीं तो मर ही जाएगी
चिड़िया सी पलती
नाजुक सी संभावनाएं
जो कि, जरूरी हुआ करती है
जीवन-यौवन के स्पंदन के लिए I
छोड़ दिया है मैंने
अब करना प्रार्थनाएं,
कर लिया है तय
खिड़कियों के तले खुलकर पुकारना,
जिससे तुम खिड़कियाँ खोलकर
झांको मेरी ओर
और मैं तुमसे बना सकूं संवाद
प्रेम के सन्दर्भ में साथ चलने के लिए I
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द (राज)

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