खडा मैं भी हूँ और तू भी है।
तंग मैं भी हूँ और तू भी है।
तंग मैं भी हूँ और तू भी है।
हमीं से लिपट गया है धुंआ।
आग मैं भी हूँ और तू भी है।
आग मैं भी हूँ और तू भी है।
अन्दर बाहर जले तो यूं जले।
राख मैं भी हूँ और तू भी है।
राख मैं भी हूँ और तू भी है।
समझ में आया होगा सफर।
साथ मैं भी हूँ और तू भी है।
साथ मैं भी हूँ और तू भी है।
वे हाथ झटक के चल दिए।
भार मैं भी हूँ और तू भी है।
भार मैं भी हूँ और तू भी है।
प्यादों के बीच प्यादे ही रहे।
चाल मैं भी हूँ और तू भी है।
चाल मैं भी हूँ और तू भी है।
वक्त को देख और ज़रा संभल ।
तीर मैं भी हूँ और तू भी है।
तीर मैं भी हूँ और तू भी है।
कभी तो होगा लोहा गर्म।
चोट मैं भी हूँ और तू भी है।
चोट मैं भी हूँ और तू भी है।
-त्रिलोकी
मोहन पुरोहित, राजसमन्द. (राज.)
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