मेरे लिए
मेरा घर
मंदिर है
आते-जाते लोग
देवता हैं
तुम दूर रहकर
क्या पा लोगे?
जरा मेरे
घर की ओर बढ़ो
देवता बन जाने के लिए।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द ( राज)
एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...
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