मध्य दुर्वा खड़ी कर , सीता बोली चुप शठ ,
देख आज दुर्वा साक्षी , संवाद जरूरी है.
सिंहासन साकेत का है, शेष सब पट्ट मात्र ,
मैं तो रानी राम की जो , निर्वाह जरूरी है.
भूत मेरे राम रहे , वर्तमान राजा राम,
भविष्य भी राम होंगे , विचार जरूरी है.
देव-नर-नाग सब , नियति में बंधे हुए ,
पर आततायी तेरा , संहार जरूरी है
रावण अधीर हो के , भाल पर बल दे के
बार - बार खड्ग खींचे , भय भर जाता है.
वानर सचेत हो के , अंग सब समेट के ,
दन्तावली भींचता है , क्रोध भर जाता है.
मंदोदरी आगे आ के , दशानन को रोक के ,
सुनीति सिखाती है वो ,क्षोभ भर जाता है.
जानकी विलाप कर , राम गुण-गान कर ,
स्वप्रीति को बताती है , कंठ भर जाता है.
सीता मात्र राम की है, राम मात्र सीता के हैं ,
सीता के हृदय पर , राम-माल शोभती .
नहीं रुचे कंठहार, मणि-माल पुष्प-माल
राम-भुज मेरी माल,वो ही माल शोभती.
वैभव मात्र राम का , और सब दीन-हीन
मर्यादा में बंधी माल , वह माल शोभती.
रोमावली राम बसे, प्राणावली राम कहे
राम को ही समर्पित, प्राण-माल शोभती.
देख आज दुर्वा साक्षी , संवाद जरूरी है.
सिंहासन साकेत का है, शेष सब पट्ट मात्र ,
मैं तो रानी राम की जो , निर्वाह जरूरी है.
भूत मेरे राम रहे , वर्तमान राजा राम,
भविष्य भी राम होंगे , विचार जरूरी है.
देव-नर-नाग सब , नियति में बंधे हुए ,
पर आततायी तेरा , संहार जरूरी है
रावण अधीर हो के , भाल पर बल दे के
बार - बार खड्ग खींचे , भय भर जाता है.
वानर सचेत हो के , अंग सब समेट के ,
दन्तावली भींचता है , क्रोध भर जाता है.
मंदोदरी आगे आ के , दशानन को रोक के ,
सुनीति सिखाती है वो ,क्षोभ भर जाता है.
जानकी विलाप कर , राम गुण-गान कर ,
स्वप्रीति को बताती है , कंठ भर जाता है.
सीता मात्र राम की है, राम मात्र सीता के हैं ,
सीता के हृदय पर , राम-माल शोभती .
नहीं रुचे कंठहार, मणि-माल पुष्प-माल
राम-भुज मेरी माल,वो ही माल शोभती.
वैभव मात्र राम का , और सब दीन-हीन
मर्यादा में बंधी माल , वह माल शोभती.
रोमावली राम बसे, प्राणावली राम कहे
राम को ही समर्पित, प्राण-माल शोभती.
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