Monday, 5 December 2011

मध्य  दुर्वा खड़ी कर  , सीता बोली चुप शठ ,
              देख आज  दुर्वा साक्षी , संवाद जरूरी है.
सिंहासन साकेत का है, शेष  सब पट्ट मात्र ,
              मैं तो रानी राम की जो , निर्वाह जरूरी है.
भूत मेरे राम  रहे , वर्तमान राजा राम,
               भविष्य भी राम होंगे , विचार जरूरी है. 
देव-नर-नाग सब , नियति में बंधे हुए ,
               पर  आततायी  तेरा  ,  संहार  जरूरी  है 
                
रावण अधीर हो के , भाल पर बल दे के
                बार - बार खड्ग खींचे , भय भर जाता है.
वानर सचेत हो के ,  अंग सब समेट के ,
                दन्तावली भींचता है , क्रोध भर जाता है.
 मंदोदरी आगे आ के , दशानन को रोक के ,
                 सुनीति सिखाती है वो ,क्षोभ भर जाता है.
जानकी विलाप कर  , राम गुण-गान कर ,
                  स्वप्रीति को बताती है , कंठ भर जाता है.

सीता मात्र राम की है, राम मात्र सीता के हैं ,
                    सीता के हृदय पर , राम-माल शोभती .
नहीं रुचे कंठहार, मणि-माल पुष्प-माल
                    राम-भुज मेरी माल,वो ही माल शोभती.
वैभव मात्र राम का , और सब  दीन-हीन
                     मर्यादा में बंधी माल , वह माल शोभती.
रोमावली राम बसे, प्राणावली राम कहे
                     राम को ही समर्पित, प्राण-माल शोभती.

                              

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