अब नहीं गोपन है , स्वामी ! सब सामने है,
राम - दूत हनुमान , कहा आप मानिए .
अपहृत जानकी को , राम-हस्त सौंप कर
क्षमा मांगें आप अब , सत्य राह मानिए .
भूल-चूक होती ही है , समय पे सुधार लें ,
भूल को स्वीकार करे , भद्र जन मानिए .
अद्य सत्य राम रूपि , सत्य को स्वीकार कर,
काल-जयी बन जाएँ , राम प्रभु मानिए .
कही गयी स्वामी सब , गरल सम उक्तियाँ ,
रुजता में गरल ही , सुधा सम बनता .
ध्यान नहीं देने पर , रुजता विषम होती ,
रुजग्रस्त तन-मन , भार सम रहता.
पथ्य लिया जाए तब , रुज कट-छंट जाता ,
रुज को दबाने पर , काल सम बनता .
महारुज अहंकार ,आत्ममुग्ध करता है ,
हे लंकेश ! मुग्ध जन,अंध सम बनता .
ऐसा नहीं स्वामी अत्र , हों ही नहीं बुद्धिजीवी ,
पर यहाँ भयभीत , कुछ नहीं कहते.
बुद्धिजीवी कहते तो , सत्य नहिं कहते हैं ,
सत्य यदि कहते हैं ,पूर्ण नहीं कहते.
पूर्ण सत्य कहते तो , तंत्र कोप भोगते हैं ,
तंत्र तले अभिव्यक्ति,मुक्त नहीं करते.
प्रतिफल स्वेच्छाचारी , मूल्य भ्रष्ट करते हैं ,
हरण जैसे कृत्य में , चूक नहीं करते .
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