सेविकाएँ मिल कर , विकट रूप धार लो,
राम-प्रिया सो ना सके , हतबुद्धि चीखता है.
राज-वामा मानकर , मैने इसे मान दिया,
ठुकरा दिया मान को , मंदबुद्धि चीखता है.
प्राण इसको प्रिय तो, कर मेरा थाम ही ले,
न मानती लंकेश को , पापबुद्धि चीखता है.
खड्ग मेरी व्याकुल है, रक्त पान चाहती है,
नर नहीं नारी सही , हठबुद्धि चीखता है.
राम-राम बोल कर , प्रिय-गुण गान कर ,
कोसकर स्व दैव को ,सीता विलाप करे.
दशानन को रोक के , मंदोदरी उसे ले के ,
"अबला है" कह कर , शीघ्र प्रस्थान करे.
निशाचरी तंत्र वहाँ , सुसक्रिय हो जाता है,
भयकारी रूप ले के , मन उद्भ्रांत करे.
हरि-भक्त त्रिजटा जो , सीता को संभालती है ,
रोकती है निशाचारी , सच का उद्घोष करे.
सुनो-सुनो सब सुनो,रावण के दिन चार ,
अघ-घट पूर्ण हुआ ,फटने ही वाला है.
निपट है अहंकारी , दृष्टिहीन तिस पर ,
पर दारा हर लाया , हटने ही वाला है.
कपि एक आयेगा ही , उधम मचायेगा ही,
लंक - देश उससे ही,जलने ही वाला है.
वारिधि बांधा जाएगा , राघव बल आयेगा
दशकंठ रण में जो ,मरने ही वाला है.
हाथ जोड़ त्रिजटा से , सती सीता बोलती है ,
त्रास मेरा कट जाए , माता कुछ कीजिए .
प्राण कैसे धारूं अब , प्राणाधार मिले नहीं ,
प्राणाधार मिल जाए , ऐसा कुछ कीजिए.
राम सुध लेते नहीं , प्रिय बिना व्यर्थ सब,
प्राण छूट जाए अब , यत्न कुछ कीजिए .
मम राम विमुख होंगे, ऐसा नहीं लगता है,
वे भी अति खिन्न होंगे , राह कुछ कीजिए.
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