विटप समूल तान , वर्तुल भ्रमण कर ,
दैत्य सारे लक्ष्य कर , दल चपेट लिया .
भुज द्वय खोल कर , रक्ष भींच - भींच कर ,
मर्दन - कर्तन कर , वहीँ निचोड़ दिया .
जातुधान चीखते हैं, कहाँ गये इन्द्रजीत ?
हाय !हमें तोड़ दिया , अरे ! मरोड़ दिया.
मेघनाथ ध्यान कर , ब्रह्म - सर साध कर ,
लक्ष्य कर वानर पे , तत्क्षण छोड़ दिया.
देख कर ब्रह्म - सर , कपि तत्र चिंतते हैं ,
कर दिया रोधन तो , ब्रह्म - अपमान है.
मानकर हरि- इच्छा, शक्ति को स्वीकार करूँ ,
ब्रह्म-हरि -हर का ही , इसमें सम्मान है.
लक्ष्य भ्रष्ट होने पर , शक्ति रुकती ही नहीं ,
जन-धन हानि होगी , पूर्व के प्रमाण है.
ब्रह्म-शक्ति माता आप , भवदीय सुपुत्र हूँ ,
कार्य सिद्धि आपसे ही , मम अनुमान है.
स्फुलिंग उडाती शक्ति , आ लगी हृदय पर ,
मानो स्वर्ण सुमेखला , मिली स्वर्ण श्रृंग से.
लुंठित पवन-पुत्र , धरा पर फैल गये,
हाय ! शिशु सोया मानो , जननी के वक्ष पे .
राक्षसों ने बंध बांधे , मूर्छित आंजनेय के,
सूम ज्यों सचेष्ट होता , हाथ लगे धन पे .
श्रम-कण छिटकता , इन्द्रजीत बैठ गया,
मिली मुक्ति मानो उसे , क्रूर काल यम से .
दैत्य सारे लक्ष्य कर , दल चपेट लिया .
भुज द्वय खोल कर , रक्ष भींच - भींच कर ,
मर्दन - कर्तन कर , वहीँ निचोड़ दिया .
जातुधान चीखते हैं, कहाँ गये इन्द्रजीत ?
हाय !हमें तोड़ दिया , अरे ! मरोड़ दिया.
मेघनाथ ध्यान कर , ब्रह्म - सर साध कर ,
लक्ष्य कर वानर पे , तत्क्षण छोड़ दिया.
देख कर ब्रह्म - सर , कपि तत्र चिंतते हैं ,
कर दिया रोधन तो , ब्रह्म - अपमान है.
मानकर हरि- इच्छा, शक्ति को स्वीकार करूँ ,
ब्रह्म-हरि -हर का ही , इसमें सम्मान है.
लक्ष्य भ्रष्ट होने पर , शक्ति रुकती ही नहीं ,
जन-धन हानि होगी , पूर्व के प्रमाण है.
ब्रह्म-शक्ति माता आप , भवदीय सुपुत्र हूँ ,
कार्य सिद्धि आपसे ही , मम अनुमान है.
स्फुलिंग उडाती शक्ति , आ लगी हृदय पर ,
मानो स्वर्ण सुमेखला , मिली स्वर्ण श्रृंग से.
लुंठित पवन-पुत्र , धरा पर फैल गये,
हाय ! शिशु सोया मानो , जननी के वक्ष पे .
राक्षसों ने बंध बांधे , मूर्छित आंजनेय के,
सूम ज्यों सचेष्ट होता , हाथ लगे धन पे .
श्रम-कण छिटकता , इन्द्रजीत बैठ गया,
मिली मुक्ति मानो उसे , क्रूर काल यम से .
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