Sunday, 25 December 2011

विटप समूल तान , वर्तुल भ्रमण कर  ,
               दैत्य सारे लक्ष्य कर , दल  चपेट  लिया .
भुज द्वय खोल कर , रक्ष भींच - भींच कर ,
               मर्दन - कर्तन कर , वहीँ  निचोड़ दिया .
जातुधान चीखते हैं, कहाँ गये इन्द्रजीत ?
               हाय !हमें तोड़ दिया , अरे ! मरोड़ दिया.
मेघनाथ ध्यान कर , ब्रह्म - सर साध कर ,
               लक्ष्य कर वानर पे , तत्क्षण छोड़ दिया. 

देख कर  ब्रह्म - सर , कपि तत्र  चिंतते हैं ,
               कर दिया रोधन तो , ब्रह्म - अपमान है.
मानकर हरि- इच्छा, शक्ति को स्वीकार करूँ ,
                ब्रह्म-हरि -हर का ही , इसमें सम्मान है.
लक्ष्य भ्रष्ट होने पर , शक्ति रुकती ही नहीं ,
                जन-धन हानि होगी , पूर्व के प्रमाण है.
ब्रह्म-शक्ति माता आप , भवदीय सुपुत्र हूँ ,
                 कार्य सिद्धि आपसे ही , मम अनुमान है.
                     
स्फुलिंग उडाती शक्ति , आ लगी हृदय पर  ,
                 मानो स्वर्ण सुमेखला , मिली स्वर्ण श्रृंग से. 
लुंठित पवन-पुत्र , धरा पर फैल गये,
                 हाय ! शिशु सोया मानो , जननी के वक्ष पे .
राक्षसों  ने बंध बांधे , मूर्छित आंजनेय के,
                  सूम ज्यों सचेष्ट  होता ,  हाथ लगे  धन पे .
श्रम-कण छिटकता , इन्द्रजीत बैठ गया,
                  मिली  मुक्ति  मानो उसे , क्रूर काल  यम से .
               


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