कपि श्री को प्रस्तुत कर , इन्द्रजीत बोलता है,
प्रभु ! यह वानर वो , जिसने हिलाया है .
अगणित रक्ष - भट्ट , आयुध अमोघ चले ,
इन्द्रजीत वीर को भी , छकाया-नचाया है .
वानर सम वानर , पर वानर ये नहीं .
यह कोई सुदेव है , शक्ति को पचाया है.
अप्रतिम वीर यह ,ब्रह्म-शक्ति सह गया,
आप जाने कौन यह ? स्वधर्म निभाया है.
वाह - वाह इन्द्रजीत , आप अनुपम वीर ,
हमें बताया वानर , कैसा हृष्ट-पुष्ट है.
दर्शन में सरल है , अनुभूति ठीक नहीं ,
अतीव उत्पात रचे , गुरुत्तर दुष्ट है.
अक्षय कुमार क्षय , हुआ इसके कर से ,
अब नहीं बच पाये , दैव अद्य रुष्ट है .
जाओ-जाओ वीर आप, श्रम- परिहार करो
इसको मैं देखता हूँ , लंकेश संतुष्ट है.
रक्त नेत्र लिये हुए , दशग्रीव बोलता है,
अरे ! कपि कौन तुम, लंका में हो कब से?
किस की है अनुमति , लंका में प्रवेश हेतु ,
इतना उत्पात किया , कौन से मंतव्य से ?
वन को उजाड़ कर ,कई सारे रक्ष मारे ,
अक्षय कुमार मारे , किस अपराध से ?
राज दशानन अत्र , रक्ष -संस्कृति है अत्र ,
निश्चित मारे जाओगे , किया जो विरोध है.
प्रभु ! यह वानर वो , जिसने हिलाया है .
अगणित रक्ष - भट्ट , आयुध अमोघ चले ,
इन्द्रजीत वीर को भी , छकाया-नचाया है .
वानर सम वानर , पर वानर ये नहीं .
यह कोई सुदेव है , शक्ति को पचाया है.
अप्रतिम वीर यह ,ब्रह्म-शक्ति सह गया,
आप जाने कौन यह ? स्वधर्म निभाया है.
वाह - वाह इन्द्रजीत , आप अनुपम वीर ,
हमें बताया वानर , कैसा हृष्ट-पुष्ट है.
दर्शन में सरल है , अनुभूति ठीक नहीं ,
अतीव उत्पात रचे , गुरुत्तर दुष्ट है.
अक्षय कुमार क्षय , हुआ इसके कर से ,
अब नहीं बच पाये , दैव अद्य रुष्ट है .
जाओ-जाओ वीर आप, श्रम- परिहार करो
इसको मैं देखता हूँ , लंकेश संतुष्ट है.
रक्त नेत्र लिये हुए , दशग्रीव बोलता है,
अरे ! कपि कौन तुम, लंका में हो कब से?
किस की है अनुमति , लंका में प्रवेश हेतु ,
इतना उत्पात किया , कौन से मंतव्य से ?
वन को उजाड़ कर ,कई सारे रक्ष मारे ,
अक्षय कुमार मारे , किस अपराध से ?
राज दशानन अत्र , रक्ष -संस्कृति है अत्र ,
निश्चित मारे जाओगे , किया जो विरोध है.
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