Monday, 26 December 2011

कपि श्री को प्रस्तुत कर , इन्द्रजीत बोलता है,
               प्रभु ! यह वानर  वो , जिसने  हिलाया  है .
अगणित रक्ष - भट्ट , आयुध अमोघ चले ,              
               इन्द्रजीत वीर को भी , छकाया-नचाया है .
वानर सम वानर , पर वानर ये नहीं .
              यह  कोई  सुदेव  है , शक्ति  को  पचाया  है.
अप्रतिम वीर यह ,ब्रह्म-शक्ति सह गया,
              आप जाने कौन यह ? स्वधर्म  निभाया है.

वाह - वाह  इन्द्रजीत  , आप अनुपम वीर ,
                        हमें बताया वानर , कैसा हृष्ट-पुष्ट है.
दर्शन में सरल है , अनुभूति ठीक नहीं ,
                        अतीव उत्पात  रचे , गुरुत्तर दुष्ट  है.
अक्षय कुमार क्षय , हुआ इसके कर से ,
                        अब नहीं बच पाये , दैव अद्य रुष्ट है . 
जाओ-जाओ वीर आप, श्रम- परिहार करो
                        इसको मैं देखता हूँ , लंकेश संतुष्ट है.

रक्त नेत्र लिये हुए , दशग्रीव बोलता है,
                       अरे ! कपि कौन तुम, लंका में हो कब से?
किस की है अनुमति , लंका में प्रवेश हेतु ,
                       इतना उत्पात किया , कौन से मंतव्य से ?
वन को उजाड़ कर ,कई सारे रक्ष मारे ,
                       अक्षय  कुमार  मारे ,  किस  अपराध  से  ?
राज दशानन अत्र , रक्ष -संस्कृति है अत्र ,
                       निश्चित  मारे जाओगे , किया जो विरोध है.
          

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