Wednesday 14 December 2011

ओह माँ  !  वात्सल्य युक्ता ,  उचित कथन  तव ,
                   होते होंगे वे मायावी, हम सिद्धि युक्त हैं.
देखो यह  महाकाय , वत्स अब  तुम्हारा है ,
                    वे सुभट- बलि होंगे , हम बुद्धि युक्त हैं .
कहते ही हनुमान , भूधर से हो गये.
                     उल्लसित सीता कहे , आप युक्ति युक्त हैं.
अब कोई शंक नहीं , अब कोई द्वैत नहीं ,
                      मुक्ति मेरी निश्चित है , राम शक्ति युक्त है 

 कंकण प्रदान कर , कहने लगी जानकी,
                  वत्स स्वामी से कहना , सीता मरी जाती है.
जैसे कर सिक्ता धरी , धीरे से खिसकती है ,
                  वैसी ही है प्राण - दशा , अब  श्वाँस  जाती है.
अब न विलम्ब करो , तन जर्जर हुआ ,
                   पक्ष  सब  विलग  हैं ,  हंसी  उड़ी  जाती  है . 
आशा के ही बल पर , प्रतिदिन लड़ती हूँ ,
                   निगोड़ी ये मृत्यु मुझे , खींचे चली जाती है. 

शाखामृग हाथ जोड़ , कहते हैं जानकी से ,
                    जननी विचार यही , रखना  उचित है .
तप में ही तपा हुआ , कुंदन निखरता है,
                    कुंदन को वह्नि-दाह , सहना उचित है.
शुद्ध स्वर्ण  मोल चढ़े , स्वर्णकार हाथ चढ़े ,
                    अलंकार  उसका  ही , गढ़ना उचित है .
सीता की नियति राम ,राम की नियति सीता,
                    प्रकृति - पुरुष रूप , मानना  उचित है.

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