ओह माँ ! वात्सल्य युक्ता , उचित कथन तव ,
होते होंगे वे मायावी, हम सिद्धि युक्त हैं.
देखो यह महाकाय , वत्स अब तुम्हारा है ,
वे सुभट- बलि होंगे , हम बुद्धि युक्त हैं .
कहते ही हनुमान , भूधर से हो गये.
उल्लसित सीता कहे , आप युक्ति युक्त हैं.
अब कोई शंक नहीं , अब कोई द्वैत नहीं ,
मुक्ति मेरी निश्चित है , राम शक्ति युक्त है
कंकण प्रदान कर , कहने लगी जानकी,
वत्स स्वामी से कहना , सीता मरी जाती है.
जैसे कर सिक्ता धरी , धीरे से खिसकती है ,
वैसी ही है प्राण - दशा , अब श्वाँस जाती है.
अब न विलम्ब करो , तन जर्जर हुआ ,
पक्ष सब विलग हैं , हंसी उड़ी जाती है .
आशा के ही बल पर , प्रतिदिन लड़ती हूँ ,
निगोड़ी ये मृत्यु मुझे , खींचे चली जाती है.
होते होंगे वे मायावी, हम सिद्धि युक्त हैं.
देखो यह महाकाय , वत्स अब तुम्हारा है ,
वे सुभट- बलि होंगे , हम बुद्धि युक्त हैं .
कहते ही हनुमान , भूधर से हो गये.
उल्लसित सीता कहे , आप युक्ति युक्त हैं.
अब कोई शंक नहीं , अब कोई द्वैत नहीं ,
मुक्ति मेरी निश्चित है , राम शक्ति युक्त है
कंकण प्रदान कर , कहने लगी जानकी,
वत्स स्वामी से कहना , सीता मरी जाती है.
जैसे कर सिक्ता धरी , धीरे से खिसकती है ,
वैसी ही है प्राण - दशा , अब श्वाँस जाती है.
अब न विलम्ब करो , तन जर्जर हुआ ,
पक्ष सब विलग हैं , हंसी उड़ी जाती है .
आशा के ही बल पर , प्रतिदिन लड़ती हूँ ,
निगोड़ी ये मृत्यु मुझे , खींचे चली जाती है.
शाखामृग हाथ जोड़ , कहते हैं जानकी से ,
जननी विचार यही , रखना उचित है .
तप में ही तपा हुआ , कुंदन निखरता है,
कुंदन को वह्नि-दाह , सहना उचित है.
शुद्ध स्वर्ण मोल चढ़े , स्वर्णकार हाथ चढ़े ,
अलंकार उसका ही , गढ़ना उचित है .
सीता की नियति राम ,राम की नियति सीता,
प्रकृति - पुरुष रूप , मानना उचित है.
जननी विचार यही , रखना उचित है .
तप में ही तपा हुआ , कुंदन निखरता है,
कुंदन को वह्नि-दाह , सहना उचित है.
शुद्ध स्वर्ण मोल चढ़े , स्वर्णकार हाथ चढ़े ,
अलंकार उसका ही , गढ़ना उचित है .
सीता की नियति राम ,राम की नियति सीता,
प्रकृति - पुरुष रूप , मानना उचित है.
No comments:
Post a Comment