वनपाल मिल कर , संगठित हुए सभी ,
सब मिल वानर को , वन से हटाते हैं .
कपि श्री वहाँ किसी से , बांधे नहिं बंधते हैं ,
दैत्य धूलि चाटते हैं , कुछ मारे जाते हैं .
क्षण भर में ही वन , क्रंदन से भर गया,
कुछ सिर धुनते हैं , कुछ भागे जाते हैं.
लंकेश सम्मुख कहे , स्वामी क्षमा कीजिए ,
मीचु सम कपि आया ,रक्ष फाड़े जाते हैं .
वृत्तांत श्रवण कर , दशग्रीव चिंतातुर ,
भेजता है निशाचर ,सुभट व मल्ल को .
दैत्य देख कपि श्री को , उपहास उड़ाते हैं ,
अरे यह तुच्छ जीव , उचित चर्वण को.
कोई कहे रज्जु लाओ , ले चलो सुबंधन में,
स्वर्णिम गात इसकी , उचित रंजन को.
कपि क्रुद्ध होते हुए , विटप से कूदते हैं ,
ठोर - ठोर हूंकते हैं ,पीसते रदन को .
जातुधान सैन्य दल, छिन्न-भिन्न होकर के,
कहता लंकेश से है , रक्ष मारे गये हैं.
शाखामृग गुरुत्तर , निर्भय है बलशाली ,
बंधन नहीं लगते हैं, रक्ष काटे गये हैं.
विद्युत वेग धावता , यकायक दृष्ट होता ,
भीमकाय रूप लेता, रक्ष रोंदे गये हैं.
पद-तले चाँप कर , कई वीर खींच दिये ,
हाय !दो-दो अंश कर , रक्ष फेंके गये हैं.
सब मिल वानर को , वन से हटाते हैं .
कपि श्री वहाँ किसी से , बांधे नहिं बंधते हैं ,
दैत्य धूलि चाटते हैं , कुछ मारे जाते हैं .
क्षण भर में ही वन , क्रंदन से भर गया,
कुछ सिर धुनते हैं , कुछ भागे जाते हैं.
लंकेश सम्मुख कहे , स्वामी क्षमा कीजिए ,
मीचु सम कपि आया ,रक्ष फाड़े जाते हैं .
वृत्तांत श्रवण कर , दशग्रीव चिंतातुर ,
भेजता है निशाचर ,सुभट व मल्ल को .
दैत्य देख कपि श्री को , उपहास उड़ाते हैं ,
अरे यह तुच्छ जीव , उचित चर्वण को.
कोई कहे रज्जु लाओ , ले चलो सुबंधन में,
स्वर्णिम गात इसकी , उचित रंजन को.
कपि क्रुद्ध होते हुए , विटप से कूदते हैं ,
ठोर - ठोर हूंकते हैं ,पीसते रदन को .
जातुधान सैन्य दल, छिन्न-भिन्न होकर के,
कहता लंकेश से है , रक्ष मारे गये हैं.
शाखामृग गुरुत्तर , निर्भय है बलशाली ,
बंधन नहीं लगते हैं, रक्ष काटे गये हैं.
विद्युत वेग धावता , यकायक दृष्ट होता ,
भीमकाय रूप लेता, रक्ष रोंदे गये हैं.
पद-तले चाँप कर , कई वीर खींच दिये ,
हाय !दो-दो अंश कर , रक्ष फेंके गये हैं.
No comments:
Post a Comment