राम चरणानुरागी , त्रिजटा यों कहती है,
खुद को संभाल बेटी , काहे खिन्न होती हो.
आप से विलग हो के, राम भी वियोगी होंगे ,
एक प्राण होकर भी , काहे भिन्न होती हो.
माता कह बुलाती हो , तिस पर रुलाती हो ,
मेरी वय भी तेरी हो , काहे छिन्न होती हो.
किंचित विश्राम ले लो, अल्पाहार ले आती हूँ ,
राम है हरि-स्वरूप , काहे चिन्त्य होती हो
मंद-मंद वायु बहे, द्विज साम छंद पढ़े.
सती सीता कहती है ,हाय ! मैं अकेली हूँ.
एक-एक क्षण मुझे , संवत्सर सा लगता,
नीरवता कचोटती , पीड़ा की सहेली हूँ .
कपि क्षण वर जान , मुद्रिका को डालते,
देख मुद्रा सती चीखी ,प्रिय !मैं अहेली हूँ .
कौन-कौन यहाँ कौन ,राम- मुद्रा कौन लाया ,
सत्य यह या माया है ?हाय!मैं पहेली हूँ.
श्रद्धा-सह सम्मुख हो, तत क्षण हनुमान ,
विनीत भाव से कहे , अम्ब !तव दास हूँ .
मुद्रा का वहन कर ,राम से ही प्रेषित हूँ ,
आप को ही शोधता , आपके ही पास हूँ
तव नायक रत हैं , सत्य की प्रतिष्ठा हेतु ,
राम के उद्देश्य हेतु , कार्य का विकास हूँ .
मायावी नहीं मानिए , आंजनेय शाखामृग,
राम-भक्त हनुमान , राम का विश्वास हूँ.
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