सुनते ही कपि श्री को ,जानकी विलाप करे,
हे ! राघव जानती हूँ , दुखी कर आई हूँ.
मेरे पीछे देवर हैं , यह तो संतोष है .
उनके वात्सल्य को भी,छीन कर आई हूँ .
लौटूं तो भी कैसे लौटूं ? मध्य में यह वारिधि ,
भाग्य अपने कर से , फोड़ कर आई हूँ
शायद ही आहार को , लेते होंगे समय से ,
हाय रे !व्यवस्था सारी ,तोड़ कर आई हूँ.
जानकी विलाप सुन , कपि- नेत्र भर कहे ,
शांत रहो माता अब , क्लेश नहीं कीजिए.
प्रभु और लक्ष्मण की , सेवा में सुग्रीव दल ,
परिचर्या सुन्दर है , खेद नहीं कीजिए .
मुद्रिका को धार कर , राम हेतु सहिजानी ,
मुझको प्रदान करें , भ्रम नहीं कीजिए .
मर्यादा के बन्ध लगे , न तु लेके चला जाऊं ,
दशग्रीव मत्सर सम , शंक नहीं कीजिए.
अरे वत्स !अति भोले , तुम अति कोमल हो ,
दशग्रीव अति दुष्ट , सुभट से युक्त है.
कई क्रूर मल्ल यहाँ , महाकाय -विकराल ,
ऋक्ष - वानर सरल , लघुता से युक्त है
देव - नर- नाग सब , दमित हैं राक्षसों से ,
कोई नहीं सहाय्य है ,बंधन से युक्त है
कैसे पार पाओगे , यहाँ रक्ष छलि - बलि ,
तिस पर मायावी हैं,साधन से युक्त है.
हे ! राघव जानती हूँ , दुखी कर आई हूँ.
मेरे पीछे देवर हैं , यह तो संतोष है .
उनके वात्सल्य को भी,छीन कर आई हूँ .
लौटूं तो भी कैसे लौटूं ? मध्य में यह वारिधि ,
भाग्य अपने कर से , फोड़ कर आई हूँ
शायद ही आहार को , लेते होंगे समय से ,
हाय रे !व्यवस्था सारी ,तोड़ कर आई हूँ.
जानकी विलाप सुन , कपि- नेत्र भर कहे ,
शांत रहो माता अब , क्लेश नहीं कीजिए.
प्रभु और लक्ष्मण की , सेवा में सुग्रीव दल ,
परिचर्या सुन्दर है , खेद नहीं कीजिए .
मुद्रिका को धार कर , राम हेतु सहिजानी ,
मुझको प्रदान करें , भ्रम नहीं कीजिए .
मर्यादा के बन्ध लगे , न तु लेके चला जाऊं ,
दशग्रीव मत्सर सम , शंक नहीं कीजिए.
अरे वत्स !अति भोले , तुम अति कोमल हो ,
दशग्रीव अति दुष्ट , सुभट से युक्त है.
कई क्रूर मल्ल यहाँ , महाकाय -विकराल ,
ऋक्ष - वानर सरल , लघुता से युक्त है
देव - नर- नाग सब , दमित हैं राक्षसों से ,
कोई नहीं सहाय्य है ,बंधन से युक्त है
कैसे पार पाओगे , यहाँ रक्ष छलि - बलि ,
तिस पर मायावी हैं,साधन से युक्त है.
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