आज के हाइकू -
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खिड़की खोली ,
है धूप गुनगुनी ,
मुक्ति मिलती .
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शाखा हिलती ,
नर्म धूप झूलती ,
मुक्ति खिलती .
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धूप दौड़ती,
लहरों पर चढ़ ,
मुक्ति बढ़ती.
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गर्द फैल के ,
नर्म धूप रोकती,
मुक्ति मरती .
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पौर-पौर पे ,
धूप के छोने बैठे,
मुक्ति सजती.
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- त्रिलोकी मोहन पुरोहित.
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