सुग्रीव के सहचर , वानर उद्दीप्त हो के ,
किलक लगाते कहे ,अभी खींच देते हैं.
कपिराज कथन तो ,आप ने उचित किया,
निशाचर छलिया है ,अभी चीर देते हैं .
धूर्त यह निशाचर , मूल रूप लिए हुए ,
अन्य कोई रूप धरे , अभी धर देते हैं .
प्रभु राम से ये मिल ,पहुंचाए क्षति कोई ,
पूर्व उस के ही इसे , अभी चांप देते हैं .
देखा सुग्रीव ने तब , वानर हैं उग्र सब,
शांत कर कहते हैं , सब ध्यान दीजिए.
राम की शरण हेतु , आगत है निशाचर ,
आगमन के कारण ,खोज लेने दीजिए.
विष के शमन हेतु ,विष ही जरूरी होता,
ग्रहण से पूर्व उसे , शोध लेने दीजिए .
राघव से मिल कर , करे हम मंत्रणा को,
तब तक इन पर , दृष्टि रख लीजिए.
सुग्रीव के इंगित से , धरा पर विभीषण ,
विभीषण देह लगे , नीलमणि नग है.
वानर सुभट तभी , घेर लेते विभीषण ,
वानर सुवर्णी लगे , स्वर्ण-रश्मि-रथ है.
सुग्रीव हुंकार कर , बढ़ चले राम ओर,
तब कपिराज लगे , गति प्राण-पुंज है.
शुद्ध शुची शैल पर , सीतापति राम बैठे,
लक्ष्मण के सह लगे , अमृत कलश है.
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