अंधकारा में कौन बैठा ,
सुबकता है
ज़रा मेरे पास आओ ,
आलोक तुम पर छिड़क दूंगा.
जानता हूँ बहुत सारे घाव तेरे .
मानता हूँ बहुत सारे दर्द तेरे.
दर्द ढोता कौन बैठा ,
सुबकता है,
ज़रा मेरे पास आओ.
कोमल हृदय में तेरी जगह है.
नेहघट तुम पर छिड़क दूंगा .
देखता हूँ बहुत तेरी है घुटन .
लेखता हूँ बहुत तेरी है टुटन.
छटपटाता कौन बैठा ,
सुबकता है,
ज़रा मेरे पास आओ.
मेरी साधना में आराध्य सा तू.
प्राणघट तुम पर छिड़क दूंगा .
सुन रहा हूँ सांसों के सरगम तेरे.
सुन रहा हूँ आहों के नर्तन तेरे .
व्यथित होता कौन बैठा,
सुबकता है,
ज़रा मेरे पास आओ.
अब अकेला तू नहीं है मान ले .
सर्वस्व तुम पर छिड़क दूंगा
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