रावण की लंका सारी , वारिधि के मध्य बसी ,
प्रभु ! लंका नगरी को , ध्वस्त कर आया हूँ .
रावण के पास कई , सुभट हैं निशाचर,
प्रभु ! कई वर वीर , मार कर आया हूँ .
रावण के ह्रदय में , परिजन-पार्षद में ,
निशाचर - समूह में , शंक भर आया हूँ.
रावण का स्वर्ण दुर्ग , स्वर्ण नगरी सहित ,
धू - धू कर होली सम , दह कर आया हूँ.
निवेदन कर कपि , चरण में नत हुए ,
राजीव ने उठ कर , वक्ष पे लगा लिया .
लक्ष्मण ने आगे बढ़ , कपि कर द्वय गह ,
साधु-साधु कह कर , अक्ष पे लगा लिया.
सुग्रीव ने मोद भर , राज-रत्न कह कर ,
वानर को दक्षिण में , भुज पे लगा लिया.
अंगद ने आगे बढ़ ,राम जयघोष कर ,
ले कर के वानर को , पृष्ठ पे लगा लिया.
सुग्रीव संकेत कर , शांत कर सभासद ,
राघव से कहते हैं , प्रभु ! बढ़ जाइए .
वीर हनुमान अद्य , निशाचर मार आये ,
आत्मबल हीन रक्ष , राम चाँप जाइए .
स्वर्ण रक्ष नगरी को , दुर्ग सह दह आये ,
रक्ष-तंत्र भ्रष्ट वहाँ , पूर्ण फूँक जाइए .
सीता सह लोकोद्धार , समय उचित जान ,
सुर्ख हुए लोह पर , चोट कर जाइए .
प्रभु ! लंका नगरी को , ध्वस्त कर आया हूँ .
रावण के पास कई , सुभट हैं निशाचर,
प्रभु ! कई वर वीर , मार कर आया हूँ .
रावण के ह्रदय में , परिजन-पार्षद में ,
निशाचर - समूह में , शंक भर आया हूँ.
रावण का स्वर्ण दुर्ग , स्वर्ण नगरी सहित ,
धू - धू कर होली सम , दह कर आया हूँ.
निवेदन कर कपि , चरण में नत हुए ,
राजीव ने उठ कर , वक्ष पे लगा लिया .
लक्ष्मण ने आगे बढ़ , कपि कर द्वय गह ,
साधु-साधु कह कर , अक्ष पे लगा लिया.
सुग्रीव ने मोद भर , राज-रत्न कह कर ,
वानर को दक्षिण में , भुज पे लगा लिया.
अंगद ने आगे बढ़ ,राम जयघोष कर ,
ले कर के वानर को , पृष्ठ पे लगा लिया.
सुग्रीव संकेत कर , शांत कर सभासद ,
राघव से कहते हैं , प्रभु ! बढ़ जाइए .
वीर हनुमान अद्य , निशाचर मार आये ,
आत्मबल हीन रक्ष , राम चाँप जाइए .
स्वर्ण रक्ष नगरी को , दुर्ग सह दह आये ,
रक्ष-तंत्र भ्रष्ट वहाँ , पूर्ण फूँक जाइए .
सीता सह लोकोद्धार , समय उचित जान ,
सुर्ख हुए लोह पर , चोट कर जाइए .
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