Saturday, 10 March 2012

चुप्पी व्याल है ,
चुप्पी कारा है ,
चुप्पी है -
एक छद्म युद्ध .


वे कहते हैं -
आज कल वो ,
बिल्कुल बदल गये हैं ,
बोलते ही नहीं ,
किसी भी  बात पर .
कोई कुछ भी करो ,
कोई लेना-देना ही नहीं ,
हो गये हैं चुप ,
जैसे जम गयी हो ,
मचलती हुई झील .
उन्हें क्या मालूम कि ,
मचलती हुई  झील ,
जब भी जमती है ,
होती है काल का रूप ,
जब भी  पिगलेगा हिम ,
तब ना जाने कितने ,
उसकी पतली पर्त से ,
खायेंगे धोखा ,
और -
मृत्यु कर लेगी उनका वरण,
चुप्पी नहीं चाहिए ,
छोड़ो-छोड़ो-छोड़ो।


कल तक जिस घर में ,
होता था शोर - शराबा ,
आज वहां है गहरी चुप्पी .
दिखने में लगता है वातावरण  ,
बहुत ही शालीन और सभ्य,
लेकिन-
अन्दर ही अन्दर ,
पनप रहा है विद्रोह,
और -
पनप रहा है दमन ,
उग रही है लहलहाती हुई ,
कुंठा व वर्जना की फसल ,
नहीं चाहिए यह सब ,
छोड़ो-छोड़ो-छोड़ो।


जीवन नदी है ,
उछलता-कूदता हुआ ,
अच्छा लगता है,
बहती हुई  नदी ,
नहीं रहती चुप,
उसके बहाव में है शोर ,
वही शोर देता है संगीत,
और -
उस संगीत में है जीवन ,
जीवन के लिए,
नहीं चाहिए चुप्पी ,
छोड़ो-छोड़ो-छोड़ो.

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