Tuesday, 6 March 2012


एक चिड़िया छोड़ आई ,

देश अपना .
चाहती थी पूर्ण करना ,
एक सपना .


चुलबुली वो बहुत खुश थी ,
चहकती थी , फुदकती थी ,
सहचर लिए वो कह रही थी ,
प्रिय -देश में अब मैं बसूँगी ,


संग साथी को लिए वो,
बुन रही थी जो  घरोंदा ,
हाय रे ! यह काल चक्र,
छिन्न-भिन्न करता घरोंदा,


लड़ रही थी काल से वो  ,
चहकती थी-फुदकती थी,  
गान गाती करुण स्वर में,
सृजन को समझा रही थी .





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