ग्रीष्म तेने,
आगमन को,
हो के मुखरित
कह दिया है .
शरद से जो ,
स्वच्छ नभ था,
बवंडरों से ,
भर दिया है .
दो दिवस से ,
जल रहा तन ,
घोर ज्वर जो ,
आ रहा है .
चार पाई से ,
चिपक कर ,
समय युग सा ,
कट रहा है .
निर्दयी ओ !
ग्रीष्म तुमने ,
धूल-धक्कड़ .
भर दिया है.
देख जाते ,
घर किसी के ,
क्षुद्र घंटी ,
हम बजाते .
विनय सह ,
हम क्षेम पूछें ,
आगमन के ,
कारण बताते .
विस्तारवादी ,
ओ ! ग्रीष्म तू ,
खिडकियों से ,
भर गया है .
मेज पर ,
रचना धरी थी ,
उड़ा-उड़ा कर ,
उल्लास करता.
तिपाई पर ,
ओषध धरी थी ,
गिरा-गिरा कर ,
उपहास करता .
शोषकों सा ,
ग्रीष्म बन तू,
ज्वर-ग्रस्त मुझ पर
छा गया है.
गलत तेरा ,
आचरण यह ,
मुझ को यह ,
स्वीकृत नहीं.
निर्लज्जता से,
सना तेरा यह
यह आगमन ,
अधिकृत नहीं.
बेखबर ,
ओ !ग्रीष्म तू ,
कविता की धार पर ,
चढ़ गया है.
गीत गाती ,
प्यार से ,
कविता प्रथम,
अति नम्र बन .
अधिकार के ,
अवरोध पर ,
कविता काटती ,
अति क्रूर बन .
ग्रीष्म तेरा दंड यह ,
प्राण के उपक्रम सजा ,
कवि कुटिर में,
अहम् से जो भर गया है.
आगमन को,
हो के मुखरित
कह दिया है .
शरद से जो ,
स्वच्छ नभ था,
बवंडरों से ,
भर दिया है .
दो दिवस से ,
जल रहा तन ,
घोर ज्वर जो ,
आ रहा है .
चार पाई से ,
चिपक कर ,
समय युग सा ,
कट रहा है .
निर्दयी ओ !
ग्रीष्म तुमने ,
धूल-धक्कड़ .
भर दिया है.
देख जाते ,
घर किसी के ,
क्षुद्र घंटी ,
हम बजाते .
विनय सह ,
हम क्षेम पूछें ,
आगमन के ,
कारण बताते .
विस्तारवादी ,
ओ ! ग्रीष्म तू ,
खिडकियों से ,
भर गया है .
मेज पर ,
रचना धरी थी ,
उड़ा-उड़ा कर ,
उल्लास करता.
तिपाई पर ,
ओषध धरी थी ,
गिरा-गिरा कर ,
उपहास करता .
शोषकों सा ,
ग्रीष्म बन तू,
ज्वर-ग्रस्त मुझ पर
छा गया है.
गलत तेरा ,
आचरण यह ,
मुझ को यह ,
स्वीकृत नहीं.
निर्लज्जता से,
सना तेरा यह
यह आगमन ,
अधिकृत नहीं.
बेखबर ,
ओ !ग्रीष्म तू ,
कविता की धार पर ,
चढ़ गया है.
गीत गाती ,
प्यार से ,
कविता प्रथम,
अति नम्र बन .
अधिकार के ,
अवरोध पर ,
कविता काटती ,
अति क्रूर बन .
ग्रीष्म तेरा दंड यह ,
प्राण के उपक्रम सजा ,
कवि कुटिर में,
अहम् से जो भर गया है.
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