रावण तनय सर्व , श्रेष्ठतम सुभट हैं,
वर वीर इन्द्रजीत , दर्शनीय वीर है .
दशानन सहोदर , एक-एक वर वीर ,
भीमकाय कुम्भकर्ण , भयंकर वीर है.
पार्षद व सभासद , दूर द्रष्टा नीतिज्ञ हैं,
श्रद्धाबुद्धि विभीषण , बुद्धिमंत वीर हैं.
दशानन रणधीर , सुदक्ष राज-कार्य में ,
हठबुद्धि पविकर्ण , अहंकारी वीर है.
अतुलित संपदा का , स्वामी दशग्रीव जाना ,
प्रभु ! आप सम वह , सतोगुणी नहीं है.
वर वीर युक्त वह , सुवाहिनी संजोता है,
प्रभु ! लोकवाहिनी सी , वाहिनी ही नहीं है.
इन्द्रजीत - कुम्भकर्ण , भयंकर निशाचर ,
प्रभु ! भ्राता - सुग्रीव से , हितकारी नहीं है.
जपी - तपी वीर वह , दक्ष रणधीर वह ,
प्रभु ! सीतापति सम , अधिकारी नहीं है.
प्रभु ! नम्र निवेदन , आंजनेय का सुनिए ,
लोकवाहिनी को अब , मुक्त कर दीजिए.
कगारों के मध्य बंधी , नदी सम वाहिनी है ,
उमड़ - गुमड रही , फैल जाने दीजिए .
आप लोकनायक हैं , लोक आप ही के साथ ,
अग्रसर हो कर के , दिशा अब दीजिए .
हर - हर कर जैसे , नदी लील जाती सब ,
रावण से शोषकों को , लील जाने दीजिए.
वर वीर इन्द्रजीत , दर्शनीय वीर है .
दशानन सहोदर , एक-एक वर वीर ,
भीमकाय कुम्भकर्ण , भयंकर वीर है.
पार्षद व सभासद , दूर द्रष्टा नीतिज्ञ हैं,
श्रद्धाबुद्धि विभीषण , बुद्धिमंत वीर हैं.
दशानन रणधीर , सुदक्ष राज-कार्य में ,
हठबुद्धि पविकर्ण , अहंकारी वीर है.
अतुलित संपदा का , स्वामी दशग्रीव जाना ,
प्रभु ! आप सम वह , सतोगुणी नहीं है.
वर वीर युक्त वह , सुवाहिनी संजोता है,
प्रभु ! लोकवाहिनी सी , वाहिनी ही नहीं है.
इन्द्रजीत - कुम्भकर्ण , भयंकर निशाचर ,
प्रभु ! भ्राता - सुग्रीव से , हितकारी नहीं है.
जपी - तपी वीर वह , दक्ष रणधीर वह ,
प्रभु ! सीतापति सम , अधिकारी नहीं है.
प्रभु ! नम्र निवेदन , आंजनेय का सुनिए ,
लोकवाहिनी को अब , मुक्त कर दीजिए.
कगारों के मध्य बंधी , नदी सम वाहिनी है ,
उमड़ - गुमड रही , फैल जाने दीजिए .
आप लोकनायक हैं , लोक आप ही के साथ ,
अग्रसर हो कर के , दिशा अब दीजिए .
हर - हर कर जैसे , नदी लील जाती सब ,
रावण से शोषकों को , लील जाने दीजिए.
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