Tuesday, 6 March 2012


उत्साह सम्पन्न हो के , सीतापति कह चले ,
                     हे सुहृद सुग्रीव जी , मंत्रणा उचित है.
नभ मध्य रवि चढ़ , सचर हैं धर्म हेतु 
                     तमस  मर्दन  करे , प्रेरणा  उचित  है .
उचित मध्याह्न अभी , विजय मुहूर्त श्रेष्ठ ,
                     चर लग्न चल रहा  , गमन उचित है .
शुभ में विलम्ब ना हो , गति में विरोध ना हो ,
                     रावण का वध तय , प्रस्थान उचित है.


वाहिनी के अग्र-अग्र, सेनापति नील चलें , 
                     सेनापति तय करें , वाहिनी के मार्ग को .
मार्ग वही उत्तम है , सुधा सम नीर मिले ,
                     फल मधु युक्त हो वो , तय करें मार्ग को .
उचित विस्तार लिए , सहज स्वरूप लिए ,
                     मुक्त हो चयन करें , निरापद मार्ग को .
शिविर लगाने हेतु , रजनी बिताने हेतु ,
                      सरल भू भाग मिले , बढ़ चलें मार्ग को .

वाहिनी का अग्र भाग , रक्षित रहे नील से ,
                           नील अनुचर सब , मार्ग को परख लें .
गिरी-गह्वर-गुहा में , लघु वन प्रांत में भी ,
                           अरि के षड्यंत्र होंगे , उचित परख लें .
सुधा सम नीर श्रोत , गरल से भ्रष्ट होंगे ,
                           वाहिनी के पान पूर्व ,प्राण को परख लें.
कपि वीर नील सह , मार्ग का सृजन करें ,
                            मार्ग में आगत सेतु , ठोक के परख लें.
                                         

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...