उत्साह सम्पन्न हो के , सीतापति कह चले ,
हे सुहृद सुग्रीव जी , मंत्रणा उचित है.
नभ मध्य रवि चढ़ , सचर हैं धर्म हेतु
तमस मर्दन करे , प्रेरणा उचित है .
उचित मध्याह्न अभी , विजय मुहूर्त श्रेष्ठ ,
चर लग्न चल रहा , गमन उचित है .
शुभ में विलम्ब ना हो , गति में विरोध ना हो ,
रावण का वध तय , प्रस्थान उचित है.
वाहिनी के अग्र-अग्र, सेनापति नील चलें ,
सेनापति तय करें , वाहिनी के मार्ग को .
मार्ग वही उत्तम है , सुधा सम नीर मिले ,
फल मधु युक्त हो वो , तय करें मार्ग को .
उचित विस्तार लिए , सहज स्वरूप लिए ,
मुक्त हो चयन करें , निरापद मार्ग को .
शिविर लगाने हेतु , रजनी बिताने हेतु ,
सरल भू भाग मिले , बढ़ चलें मार्ग को .
नील अनुचर सब , मार्ग को परख लें .
गिरी-गह्वर-गुहा में , लघु वन प्रांत में भी ,
अरि के षड्यंत्र होंगे , उचित परख लें .
सुधा सम नीर श्रोत , गरल से भ्रष्ट होंगे ,
वाहिनी के पान पूर्व ,प्राण को परख लें.
कपि वीर नील सह , मार्ग का सृजन करें ,
मार्ग में आगत सेतु , ठोक के परख लें.
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