Sunday, 11 March 2012

नव  गीत .
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कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग ,
अभी भी तुझ पर ,
है विश्वास .

जिंदगी के  खेत  ,
फेले हैं  ,
श्वांसों की फसल ,
झूमे हैं .
लुटेरे लगाए हुए  ,
उस पर घात  .
कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग .

कुछ लुटेरे लगे ,
हुए हैं ,
जिन्दगी की खुली ,
लूट में ,
चाहते हैं कब लगे ,
तेरी आँख.
कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग .


कर  पेनी  कलम ,
अनुभूति लिए ,
अवांछित हटा,
अभिव्यक्ति लिए ,
पतझड़ के मौसम में ,
सृजन की है चाह .
कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग .




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