नव गीत .
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कलम के सिपाही ,
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कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग ,
अभी भी तुझ पर ,
है विश्वास .
जिंदगी के खेत ,
फेले हैं ,
श्वांसों की फसल ,
झूमे हैं .
लुटेरे लगाए हुए ,
उस पर घात .
कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग .
कुछ लुटेरे लगे ,
हुए हैं ,
जिन्दगी की खुली ,
लूट में ,
चाहते हैं कब लगे ,
तेरी आँख.
कलम के सिपाही ,
जिन्दगी की खुली ,
लूट में ,
चाहते हैं कब लगे ,
तेरी आँख.
कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग .
कर पेनी कलम ,
अनुभूति लिए ,
अवांछित हटा,
अभिव्यक्ति लिए ,
पतझड़ के मौसम में ,
सृजन की है चाह .
कलम के सिपाही ,
कर पेनी कलम ,
अनुभूति लिए ,
अवांछित हटा,
अभिव्यक्ति लिए ,
पतझड़ के मौसम में ,
सृजन की है चाह .
कलम के सिपाही ,
जाग रे जाग .
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