Tuesday 13 March 2012

वाहिनी के अग्र-अग्र, सेनापति नील चलें , 
                     सेनापति तय करें ,वाहिनी के मार्ग को .
मार्ग वही उत्तम है , सुधा सम नीर मिले ,
                     छाँव फल मधु युक्त , तय करें मार्ग को .
उचित विस्तार लिए , सहज स्वरूप लिए ,
                     मुक्त हो चयन करें , निरापद मार्ग को .
शिविर लगाने हेतु , रजनी बिताने हेतु ,
                     सरल भू भाग मिले , बढ़ चलें मार्ग को .



वाहिनी का अग्र भाग , नील से रक्षित रहे ,
                           नील अनुचर सब , मार्ग को परख लें .
गिरी-गह्वर-गुहा में , लघु वन प्रांत में भी ,
                           अरि के षड्यंत्र होंगे , उचित परख लें .
सुधा सम नीर श्रोत , गरल से भ्रष्ट होंगे ,
                           वाहिनी के पान पूर्व ,प्राण को परख लें.
कपि वीर नील सह , मार्ग का सृजन करें ,
                            मार्ग में आगत सेतु , ठोक के परख लें.
                                         

ऋषभ दाहिनें रहें , वाम गंधमादन हों,
                     वाहिनी  रक्षित रह , मध्य  बढ़ी जाएगी .
वीर द्वय सजग हो , पार्श्व द्वय संभालेंगे ,
                     अरि घात लिए होगा , बची चली जाएगी .
मध्य भाग वाहिनी में , मया सह लक्ष्मण से , 
                     हनुमान - अंगद से , प्रेरणा  दी  जाएगी .
वाहिनी के पश्च भाग , जाम्बवंत सुषेण हो ,
                     वेगदर्शी  वानर  हो ,  दृढ़  होती  जाएगी .



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