मेरे आँगन में होली पर
उतर आये इन्द्रधनुष ,
इसलिए मेरे घर पर ,
जरूर आना मित्र ,
मुझे प्रतीक्षा रहेगी .
घर पर बनाई है ,
पसंद की मिठाइयां ,
कुरकुरी नमकीन ,
मिल बैठेंगे मेरे यार ,
खायेंगे और -
थोड़ी सी कर लेंगे
गली के खिलंदड ,
छोरों के साथ धमाल .
यही तो एक अवसर है ,
संबंधों को लाल रंग में ,
तरबतर करने का ,
आयेगा न , मुझे प्रतीक्षा है.
मैं जानता हूँ तेरा शहर ,
मेरे शहर से ज़रा दूर है ,
फिर भी तुझे आएगी ,
मेरी याद .
तुझे याद है ना ,
होली के ही दिन ,
हमने शर्मा जी को उठा कर ,
पानी की प्याऊ में ,
खूब डुबोया था,
वो भी याद होगा ,
शर्मा चाची ने दी थी ,
दनादन गालियाँ .
शर्मा जी से मिल लें ,
उनके चरणों में,
धीरे से बिछा देंगे,
श्रद्धा का पीत रंग.
देख तू रोना नहीं ,
एक खबर देता हूँ ,
आजकल चाचा,
बिल्कुल अकेले हैं.
हाँ , एक बात और ,
याद होगी तुझे भूरा की ,
हाँ - हाँ ,वही भूरा ,
जो हमारे लिए ,
अपना काम छोड़ ,
गड़ दिया करता था ,
गिल्ली -डंडा और बल्ला,
हाँ वही भूरा ,
शहर में गया था कमाने ,
और ,
मेट्रो के नीचे ,
खो आया अपने पैर .
तू आजाये तो ,
भूरा का दर्द ,
ज़रा कम होगा ,
दे नहीं सकते पैर ,
परन्तु ,दे ही आयेंगे ,
बैसाखी का एक जोड़ा .
इस होली पर ,
उसके उदास कपोलों पर,
मल आयेंगे ,
प्यार का मनचाहा रंग .
मुझे मालूम है -
मेरी इन बातों से ,
उदास जरूर होगा ,
पर खुश-खुश ले आयेगा ,
प्यार का रंग ,
और -
सजेगा मेरे आँगन में ,
कई सालों बाद इन्द्रधुनुष.
उतर आये इन्द्रधनुष ,
इसलिए मेरे घर पर ,
जरूर आना मित्र ,
मुझे प्रतीक्षा रहेगी .
घर पर बनाई है ,
पसंद की मिठाइयां ,
कुरकुरी नमकीन ,
मिल बैठेंगे मेरे यार ,
खायेंगे और -
थोड़ी सी कर लेंगे
गली के खिलंदड ,
छोरों के साथ धमाल .
यही तो एक अवसर है ,
संबंधों को लाल रंग में ,
तरबतर करने का ,
आयेगा न , मुझे प्रतीक्षा है.
मैं जानता हूँ तेरा शहर ,
मेरे शहर से ज़रा दूर है ,
फिर भी तुझे आएगी ,
मेरी याद .
तुझे याद है ना ,
होली के ही दिन ,
हमने शर्मा जी को उठा कर ,
पानी की प्याऊ में ,
खूब डुबोया था,
वो भी याद होगा ,
शर्मा चाची ने दी थी ,
दनादन गालियाँ .
शर्मा जी से मिल लें ,
उनके चरणों में,
धीरे से बिछा देंगे,
श्रद्धा का पीत रंग.
देख तू रोना नहीं ,
एक खबर देता हूँ ,
आजकल चाचा,
बिल्कुल अकेले हैं.
हाँ , एक बात और ,
याद होगी तुझे भूरा की ,
हाँ - हाँ ,वही भूरा ,
जो हमारे लिए ,
अपना काम छोड़ ,
गड़ दिया करता था ,
गिल्ली -डंडा और बल्ला,
हाँ वही भूरा ,
शहर में गया था कमाने ,
और ,
मेट्रो के नीचे ,
खो आया अपने पैर .
तू आजाये तो ,
भूरा का दर्द ,
ज़रा कम होगा ,
दे नहीं सकते पैर ,
परन्तु ,दे ही आयेंगे ,
बैसाखी का एक जोड़ा .
इस होली पर ,
उसके उदास कपोलों पर,
मल आयेंगे ,
प्यार का मनचाहा रंग .
मुझे मालूम है -
मेरी इन बातों से ,
उदास जरूर होगा ,
पर खुश-खुश ले आयेगा ,
प्यार का रंग ,
और -
सजेगा मेरे आँगन में ,
कई सालों बाद इन्द्रधुनुष.
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