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शोर मचाती ,
है रेल फिसलती,
घर भी ऐसा .
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आगे ईंजन ,
खींच रहा है बोगी,
घर के जैसा.
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ठांव-ठांव ले ,
रेल दौड़ लगाती ,
घर भी देखा.
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पटरी है तो,
नित रेल चलेगी,
घर भी वैसा .
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टूटी पटरी ,
ईंजन है छिटका ,
घर ही टूटा .
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ईंजन-बोगी ,
लग रेल बना है ,
घर भी माने .
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चलती रेल ,
चलती है पटरी,
घर भी जानें .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द.
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