Sunday 23 December 2012

शीत सुहानी .


===========
चढ़ आई है ,
घर की बुढिया सी,
शीत सुहानी .
*******************
लिये रजाई ,
कम्बल ओढ़े आई ,
शीत सुहानी.
*******************
सी सी करती ,
दस्तक देती आई ,
शीत सुहानी .
*******************
मीठा हलुआ ,
गुड-तिल्ली ले आई ,
शीत सुहानी.
*******************
खींच रजाई ,
माँ बोली -"ओढ़ इसे" ,
शीत सुहानी .
*******************
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द .

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...