Saturday 1 December 2012

नाजुक शीत


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नाजुक शीत ,
धूप के छंद रचे,
पढ़ते हम .
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पसरी धूप,
चादर सी लगती,
ओढ़ते हम .
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चांदी ऊपर ,
नीचे स्वर्ण राशियाँ,
मुग्ध हैं हम.
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एक हो गए ,
सूरज और चन्दा ,
कम्पित हम.
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दिन को धूप ,
ले ली रात रजाई,
सिकुड़े हम.
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रात की स्याही,
ले दिन का कागज़.
लिखते हम.
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धूप की टोपी,
हर कोई पहने ,
एक से हम.
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