Saturday, 1 December 2012


राम को प्रणाम कर , सुग्रीव यों कह चले,
             प्रभु एक निशाचर , तट पर आया है .
मायावी प्रवृत्ति लिये ,सहचर साथ लिये ,
             श्याम-वर्ण भीम-देह , नभ-पथ आया है.
निशाचर छलिया है, घातक स्वभाव लिये,
             सच पूछे तो प्रभु जी , मृत्यु-मुख आया है.
अस्त्र-शस्त्र साथ लिये ,कथित संत्रास लिये,
             रावण अनुज वह , शरण में आया है .

निशाचर विभीषण , रावण अनुज वह ,
             रावण को भ्रष्ट कहे , संदेह उपजता.
रावण को अघचारी , बार-बार कहता है,
             भक्ति-भाव राम प्रति , आशंकित करता.
सीता के हरण को वो, अनुचित कहता है,
             रावण से पीड़ित है , संभव न लगता.
जानकी हरण हुए , कालसूत्र दीर्घ हुए ,
             हम आये वह आया , उचित न लगता .

प्रभु मम निवेदन , आप के समक्ष यह ,
             अरिभ्राता निशाचर , विश्वास न कीजिए.
रावण से पोषित जो , शरण में आगत है ,
             माँगता शरण वह , शरण न दीजिए.
सेना और संगठन , पढ़ना वो चाहता है,
             निशाचर दुष्ट होते, प्रवेश न दीजिए.
सोया हुआ देख कर , करेगा आघात यह ,
             भीषण है दाह सम , बढ़ने न दीजिए.


No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...