राम को प्रणाम कर , सुग्रीव यों कह चले,
प्रभु एक निशाचर , तट पर आया है .
मायावी प्रवृत्ति लिये ,सहचर साथ लिये ,
श्याम-वर्ण भीम-देह , नभ-पथ आया है.
निशाचर छलिया है, घातक स्वभाव लिये,
सच पूछे तो प्रभु जी , मृत्यु-मुख आया है.
अस्त्र-शस्त्र साथ लिये ,कथित संत्रास लिये,
रावण अनुज वह , शरण में आया है .
निशाचर विभीषण , रावण अनुज वह ,
रावण को भ्रष्ट कहे , संदेह उपजता.
रावण को अघचारी , बार-बार कहता है,
भक्ति-भाव राम प्रति , आशंकित करता.
सीता के हरण को वो, अनुचित कहता है,
रावण से पीड़ित है , संभव न लगता.
जानकी हरण हुए , कालसूत्र दीर्घ हुए ,
हम आये वह आया , उचित न लगता .
प्रभु मम निवेदन , आप के समक्ष यह ,
अरिभ्राता निशाचर , विश्वास न कीजिए.
रावण से पोषित जो , शरण में आगत है ,
माँगता शरण वह , शरण न दीजिए.
सेना और संगठन , पढ़ना वो चाहता है,
निशाचर दुष्ट होते, प्रवेश न दीजिए.
सोया हुआ देख कर , करेगा आघात यह ,
भीषण है दाह सम , बढ़ने न दीजिए.
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