Saturday, 29 December 2012

वह सोयी है .


     मत बतियाओ ,
चुप-चुप-चुप-चुप-चुप
       वह सोयी है .

       पूरे पखवाड़े ,
  वह तड़प-तड़प कर,
जैसे-तैसे श्वासें ले कर,
        मछली जैसे ,
     मचल-मचल कर ,
अभी-अभी वह शांत हुई है,
      शायद सोती है ,
तुम से विनती एक यही है -
      उस को सोने दो,
  चुप-चुप-चुप-चुप-चुप,
         वह सोयी है .

       चेहरा उस का ,
  कितना दर्द भोग कर,
देखो कैसा म्लान हुआ है,
      जैसे रक्त कमल,
मदांधगज से नोचा जा कर,
कांतिहीन निष्प्राण हुआ है ,
  उस के घाव बहुत हरे हैं  
        बहुत थकी है
तुम से विनती एक यही है,
      विस्मृत ही रहने दो,
    चुप-चुप-चुप-चुप-चुप,
           वह सोयी है .

          सुनते हो ना ,
मदांधगज की चिंगाडों को,
  वह आवारा दिशाहीन है,
          आज जरूरत,
 मर्यादा और मूल्यों की है ,
देश अभाव से कांतिहीन है,
  उस की देह उधड़ गयी है,
          बहुत डरी है,
तुम से विनती एक यही है,
    ओढ़ दुशाला सोने दो ,
   चुप-चुप-चुप-चुप-चुप,
           वह सोयी है .

                                           - त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द .



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