Tuesday 4 December 2012


सुग्रीव कथन सुन ,व्यग्र सब वानर थे ,
             अंगद सहित तब , उग्र दिखने लगे.
लक्ष्मण का वाम हस्त ,शरधि पहुँच गया,
             शर तोल-तोल कर , क्रुद्ध दिखने लगे.
हनुमान देख रहे , चंचल हैं भट सब ,
             वक्र रेख आनन पे , चिंत दिखने लगे .
राम सुन दृढ रहे , जैसे शैल-श्रृंग रहे,
             राम जैसे राम रहे , राम दिखने लगे.

सुग्रीव को देख कर ,लक्ष्मण-संस्पर्श कर
             राम मुस्करा के कहे , शांतचित्त रहिए .
संगठन ले कर के , आगे बढ़ रहे हम ,
             संगठन हेतु आप , मंत्रणा को कीजिए.
विभीषण आकर के , शरण को चाहते हैं ,
             निर्णय लेने से पूर्व , अनुभव कहिए .
उचित व्यवहार जो , सर्वहित सत्य रहे,
             विभीषण हेतु तब ,शीघ्र कार्य कीजिए.

कोई वीर कहता है , रावण अनुज यह,
             उचित न लगता है , फिर भेज दीजिए.
कोई कहे अरि यह , बच के न जाए अब,
             दल सह मार डालें , समय न चूकिए.
कोई कहे निशाचर,अरि देश से आगत ,
             बंधन में डाल कर , अरि भेद लीजिए.
कोई कहे संदेही है , गुप्तचर लगाइए ,
             संदेह के दूर होते , शरण में लीजिए .

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...