गंगा सम शीतल करे , शब्द नेह की धार .
तपे घृणा की आग में , शब्द हुए तलवार.
स्वर्ण-रजत के जोर पे ,किस ने पाया प्यार.
प्रेम - शब्द के जोर पे , प्यार करे व्यवहार .
शब्दों की सरिता चले ,खुलते विकट कपाट .
छैनी भी ठन - ठन करे , रचती रूप विराट .
शब्दों की विरुदावली , मम मुख बसो सदैव.
शब्द मुझे दाता दिखे , ब्रह्मा - विष्णु - महेश .
शब्द-साधना मांगती , सरल-सादगी-धार.
प्राण ज्यों ऊँचो चढ़े , ले अनुभव -विस्तार.
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित .
तपे घृणा की आग में , शब्द हुए तलवार.
स्वर्ण-रजत के जोर पे ,किस ने पाया प्यार.
प्रेम - शब्द के जोर पे , प्यार करे व्यवहार .
शब्दों की सरिता चले ,खुलते विकट कपाट .
छैनी भी ठन - ठन करे , रचती रूप विराट .
शब्दों की विरुदावली , मम मुख बसो सदैव.
शब्द मुझे दाता दिखे , ब्रह्मा - विष्णु - महेश .
शब्द-साधना मांगती , सरल-सादगी-धार.
प्राण ज्यों ऊँचो चढ़े , ले अनुभव -विस्तार.
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित .
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