जब हम अपना
शहर छोड़
होते हैं बाहर
हमें अपने लोग
करते हैं याद
नियति की तरह।
शहर छोड़
होते हैं बाहर
हमें अपने लोग
करते हैं याद
नियति की तरह।
कुछ की स्मृतियों में
हम आवश्यकता के जैसे
कुछ के लिए
हम साधन के जैसे
कुछ चाहते हैं
हम को दिनचर्या के जैसे
कुछ के लिए पीड़ा के चलते
हम प्रियतम के जैसे
कहीं सेतु से
कहीं ईंट-गारे के जैसे
परंतु हम ही नहीं जान पाते
आखिर कर हम कौन
स्वयं के लिए किसके जैसे?
हम आवश्यकता के जैसे
कुछ के लिए
हम साधन के जैसे
कुछ चाहते हैं
हम को दिनचर्या के जैसे
कुछ के लिए पीड़ा के चलते
हम प्रियतम के जैसे
कहीं सेतु से
कहीं ईंट-गारे के जैसे
परंतु हम ही नहीं जान पाते
आखिर कर हम कौन
स्वयं के लिए किसके जैसे?
त्रिलोकी मोहन पुरोहित ( राजसमन्द
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