Thursday, 7 January 2016

अस्तित्व के लिए

जिनके लिए दीवानगी तक
चले जाते हैं
वे सब एक दिन
चले जाएंगे छोड़ कर 
संध्या की ललाई की तरह।
जब भी छूट जाती है
हाथ से जली हुई लौ 
अचानक अंधेरा 
लील जाता है सभी को 
भयानक अजदहे की तरह।
सोचने का समय जब 
छूट जाता है हाथ से
तब स्याह वर्ण ही 
शेष रहता आसपास 
जैसे वह फैल गया हो 
श्वेत पत्र पर 
स्याही की तरह।
प्रेम की लौ जलाकर
हाथ में 
थामे हुए रखना,
सभी के 
अस्तित्व के लिए
है बहुत जरूरी ,
स्याह रंग हमेशा ही 
धमकता चला आता 
आवारा पशु की तरह।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द।
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