किए गए तर्पण से
कितने दिवंगत
तृप्त होते होंगे
नहीं मालूम,
लेकिन चिड़िया के
परिंडे में
की गई जल की व्यवस्था,
प्राणों को
तृप्त करती ही है
नित्य की
चहचहाहट के साथ
जैसे कर दिया
निरन्तर अतीत को
वर्तमान के साथ।
कितने दिवंगत
तृप्त होते होंगे
नहीं मालूम,
लेकिन चिड़िया के
परिंडे में
की गई जल की व्यवस्था,
प्राणों को
तृप्त करती ही है
नित्य की
चहचहाहट के साथ
जैसे कर दिया
निरन्तर अतीत को
वर्तमान के साथ।
परिंडे के चारों ओर
चिड़िया शोर करती
जमा होती,
कंठ गीला करती
पंख फड़फड़ाती नहाती,
सहचरों को लुभाती
संभोग करती
दुनिया बसाती
नित्य ही
उष्णता के साथ,
मानो परिंडे ने
सृजन के
एक क्षण में
अतीत से वर्तमान में
सौंप दी है
निर्भया व्यवस्था।
चिड़िया शोर करती
जमा होती,
कंठ गीला करती
पंख फड़फड़ाती नहाती,
सहचरों को लुभाती
संभोग करती
दुनिया बसाती
नित्य ही
उष्णता के साथ,
मानो परिंडे ने
सृजन के
एक क्षण में
अतीत से वर्तमान में
सौंप दी है
निर्भया व्यवस्था।
डर गए हो "संभोग" के
उद्धत प्रयोग से,
चिंतकर बताना -
भुक्ति से भोग तक
भोग से संभोग तक
संभोग से समाधि तक
जीवन कहाँ नहीं प्रसरित?
निरुत्तर रह गए.............
चलो कोई नहीं हानि
एक परिंडे की व्यवस्था
दुनिया को
जीवित रखेगी निरंतर
अतीत से वर्तमान में
चिड़ियाओं की
उद्धत केलिक्रिडाओं
एवं,
उदात्त कलरव के साथ।
उद्धत प्रयोग से,
चिंतकर बताना -
भुक्ति से भोग तक
भोग से संभोग तक
संभोग से समाधि तक
जीवन कहाँ नहीं प्रसरित?
निरुत्तर रह गए.............
चलो कोई नहीं हानि
एक परिंडे की व्यवस्था
दुनिया को
जीवित रखेगी निरंतर
अतीत से वर्तमान में
चिड़ियाओं की
उद्धत केलिक्रिडाओं
एवं,
उदात्त कलरव के साथ।
- त्रिलोकी
मोहन पुरोहित, राजसमन्द.
No comments:
Post a Comment