हमेशा के लिए
भेज दिया संदेश
मौन के रूप में,
जानता हूँ
नहीं है ध्वनित
मधुर संवाद
श्रुति का रूप लिए,
जिसे तुम
स्वीकार कर
अनजान बनते हो
जो तुम्हारे हाव से भी
ज्ञात होता है ।
भेज दिया संदेश
मौन के रूप में,
जानता हूँ
नहीं है ध्वनित
मधुर संवाद
श्रुति का रूप लिए,
जिसे तुम
स्वीकार कर
अनजान बनते हो
जो तुम्हारे हाव से भी
ज्ञात होता है ।
समझकर भी
नहीं समझना तुम्हारा,
प्रेम के
पथ पर निरन्तर
साथ चलने का संकल्प
है अघोषित रूप में,
जैसे हिमालय से लिपट
गंगा निकलती
प्रेम के वशीभूत हो
उछलती बहती है निरन्तर।
नहीं समझना तुम्हारा,
प्रेम के
पथ पर निरन्तर
साथ चलने का संकल्प
है अघोषित रूप में,
जैसे हिमालय से लिपट
गंगा निकलती
प्रेम के वशीभूत हो
उछलती बहती है निरन्तर।
यह भी जानना है जरूरी
हमारे लिए कि,
गंगा के अघोषित
प्रेम भरे प्रवाह में
नम हो कटता हुआ
उत्तराखंड से
निकलता हिमालय
बिछता चला जाता खाड़ी तक
सुंदरवन में वियोगी के रूप में।
हमारे लिए कि,
गंगा के अघोषित
प्रेम भरे प्रवाह में
नम हो कटता हुआ
उत्तराखंड से
निकलता हिमालय
बिछता चला जाता खाड़ी तक
सुंदरवन में वियोगी के रूप में।
तुम समझो या न समझो
मौन के संवाद को
लेकिन हम पहुंच जाएँ
प्रेम के प्रवाह में
नम होते हुए कट-छँट कर
सूक्ष्म रूप में
उत्तराखंड से निकल
सुंदरवन तक समाधि के रूप में।
मौन के संवाद को
लेकिन हम पहुंच जाएँ
प्रेम के प्रवाह में
नम होते हुए कट-छँट कर
सूक्ष्म रूप में
उत्तराखंड से निकल
सुंदरवन तक समाधि के रूप में।
- त्रिलोकी
मोहन पुरोहित, राजसमन्द (राज)
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