भूख और
प्यास के समक्ष
झुक जाते हैं लोग
लेकिन खड़े हो जाते हैं
स्वत्व और अस्मिता के
सवाल के आगे
मामूली से गिने जाने वाले
केंचुए से लोग
तमककर उछल आते है
तब सिंहों की तरह
या,
दबाए गए फणींद्र की तरह
उस समय बचाव के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं रहता शेष
दमन और दलन के पास
इतिहास बदलते हैं
वे ही केंचुए से लोग ।
झुक जाते हैं लोग
लेकिन खड़े हो जाते हैं
स्वत्व और अस्मिता के
सवाल के आगे
मामूली से गिने जाने वाले
केंचुए से लोग
तमककर उछल आते है
तब सिंहों की तरह
या,
दबाए गए फणींद्र की तरह
उस समय बचाव के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं रहता शेष
दमन और दलन के पास
इतिहास बदलते हैं
वे ही केंचुए से लोग ।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द।
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